Taaranswami
तारण स्वामी
जैन धर्म की एक शाखा के रूप में तारण पंथ प्रचलित है। तारण स्वामी बाल ब्रह्मचारी थे और बचपन से ही उनका मन वैराग्य से ओतप्रोत था और उन्हें आत्म कल्याण की भावना थी। आचार्य कुंदकुंद के समयसार, आचार्य पूज्यपाद के इष्टोपदेश आदि ग्रंथों का उन पर प्रभाव दिखाई देता है। तारण स्वामी का जन्म विक्रम संवत 1505 में पुष्पावती जिला कटनी मध्य प्रदेश में हुआ था। इनके पिता का नाम गड़ा साहू और माता का नाम वीरश्री था। इनका देवस्थान विक्रम संवत 1572 में हुआ। 67 वर्ष के जीवन में इन्होंने स्वाध्याय के साथ-साथ ज्ञान प्रचार किया और 14 ग्रंथों की रचना की।
1. माला रोहण
2. पंडित पूजा
3. श्री कमल बत्तीसी
4. श्रावकाचार
5. ज्ञान समुच्चय सार
6. त्रिभंगी सार
7. चौबीस ठाणा
8. ममल पाहुड़
9. खातिका विशेष
10. सिद्धि स्वभाव
11. सुन्न स्वभाव
12. छद्मस्थ वाणी
13. नाम माला
14. उपदेश शुद्ध सार
इस तरह अपभ्रंश भाषा के आध्यात्मिक योगदान में इनका विशेष उल्लेखनीय योगदान रहा है।
संस्कृत, अपभ्रंश और प्राकृत भाषा के कवियों की तरह हिंदी भाषा के जैन कवियों और लेखकों ने भी अनेक ग्रंथों का प्रणयन करके जैन शासन की श्रीवृद्धि में बहुत योगदान दिया है। उन्होंने अपभ्रंश भाषा की कथाओं में परिवर्तन करके सुंदर काव्य लिखे और जैन साहित्य की सेवा की। हिंदी जैन साहित्य के लगभग 100 से अधिक जैन कवि हुए हैं उन सभी का जीवन परिचय प्रस्तुत कर पाना संभव नहीं है अतः मुख्य कवियों और उनके कृतित्व पर प्रकाश डालना ही न्याय संगत होगा।